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________________ २६६ ] सुबोध जैन पाठमाला – भाग २ ४ 3 मण्डल के ५ पाँच दोष इंगाले' घूमे संजोयरगाउ पमाणे कारणे । अंगार' घूमर सयोजना प्रमारण कारण । मण्डल दोष : आहार करते समय लगने वाले दोष । १. इंगाले ( श्रंगार ) : प्रासुक एषणीय अशनादि में रागी बनकर उसकी सराहना करते-करते उसे भोगना । २. घूमे ( घूम ) : प्रासुक एषणीय अशनादि मे द्वेषी बन कर उसकी निन्दा करते हुए उसे भोगना । क्रमशः राग और द्वेष के कारण ये दोनो दोष माने गये हैं । ३. संजोयरा (संयोजना) : किसी द्रव्य मे मनोज्ञ रूप, गंध, रस (स्वाद), या स्पर्श उत्पन्न करने के लिए, उसमें अन्य द्रव्यों को मिलाकर भोगना । विषय- लोलुपता के कारण यह दोष माना गया है । ४. पमाणे (प्रमाण) : जितनी भूख हो, उस प्रमारण से उपरान्त भशनादि भोगना । 3 सामान्यतः स्वस्थ, सबल और युवावस्था वाले पुरुष के लिए ३२ बत्तीस कवल, स्त्री के लिए २८ कवल और नपुसक के लिए २४ कवल, यह आहार का प्रमाण माना गया है। प्रमारण उपरान्त प्राहार, प्रमाद और विकार का कारण होने से दोष माना है । ५. कारणे (कारण) : बिना कारण प्रहार करना या बिना कारण प्रहार छोड़ना । आहार त्याग के छ. कारण की गाथा बेयरण' बेयावच्चे', इरियट्टाए' य संजमट्ठाए । तह पारण वत्तियाए, छट्ठ पुरण धम्मचिताए ॥१॥
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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