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________________ तत्त्व विभाग-'पाँच समिति तीन गुप्ति का स्तोक' [२६३ १२ विज्जा (विद्या): जिसको अधिष्ठात्री देवी हो, या जो साधना से सिद्ध हो, उपका प्रयोग करके या उसे सिखला करके आहार आदि लेना। १३. मते (मन्त्र) : जिसका अविष्ठाता देव हो या जो बिना साधना अक्षर विन्यास मात्र से मिद्ध हो, उसका प्रयोग करके या उसे सिखला करके आहार आदि लेना। १४ चुगरण (चूर्ण) : अदृश्य होना, मोहित करना, स्तभिन करना आदि बातें जिससे हो सके, ऐसे अञ्जनादि का प्रयोग करके या सिखला करके आहार आदि लेना । १५ जोग (योग) : जिसका लेप करने पर, आकाश में उडना, जल पर चलना, आदि बाते हो सके, ऐसे पदार्थ का प्रयोग करके या सिखला कर के आहार आदि लेना। १६. मूलकम्मे (मूलकर्म) : गर्भ स्तभन, गर्भाधान, गर्भपात आदि बाते जिससे हो सके, ऐसी जडी बूटी, या सामान्य जडी बूंटी दिखला करके आहार आदि लेना। इन 'विद्या' आदि पाचो मे भी निमित्त के समान दोष सभव होने से, ये पाचो आहार भी सदोष है । __ एषणा के १० दश दोष की गाथा संकिय ' मविखय निदखत्त, पिहिय साहरिय५६दायगुम्मीसे ॥ अपरिरणय लित्त छड़िय,१० एसरण दोसा दस हवंति ॥१॥ शकित' म्रक्षित निक्षिप्त3, पिहित सहत' दायको मिश्रा। अपरिगत लिप्त छदित१० दश है एपणा दोष ॥१॥
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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