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________________ तत्त्व-विभाग--'पांच समिति तीन गुप्ति का स्तोक' [ २६१ उत्पादना दोष : आहार आदि ग्रहण करते समय मुख्यतया साधु की ओर से साधु को लगने वाले दोष। १. धाई (धात्री) : धाय का काम करके अर्थात् बच्चो को खिलाने पिलाने आदि का काम करके आहार आदि लेना। २. दूई (दूति) : दूति का काम करने अर्थात् सन्देश को पहुँचाने-लाने का काम करके आहार आदि लेना। धाय आदि काम करने से १. साधु के भिक्षुकपन मे और २ साधुत्व मे कमी आती है तथा ३. उतने समय तक ज्ञान दर्शन चारित्र की आराधना मे बाधा पडती है, अत ये दोनो आहार सदोष है। ३. निमित्ते (निमित्त) : बाह्य निमित्तो से १ भूत २. भविष्य ३. वर्तमान काल के १ लाभ २. अलाभ ३ सुख ४. दुख ५ जीवन ६ मरण को बतलाकर या निमित्त सिखलाकर आहार आदि लेना। लाभादि बता कर आहार लेने मे १ भिक्षुकपन मे कमी आती है, २ ससार प्रवृत्ति बढती है, ३ जीव विराधना सभव है और ४ बताया हुआ निमित्त मिथ्या होने पर गृहस्थ को रोषादि सभव है, इसलिए यह आहार सदोष है। ४. प्राजीव : अपने जाति कुल सम्बन्ध आदि को प्रकट करके आहार आदि लेना। इसमे भी भिक्षुकपन मे कमी आती है । ५ वरणीमगे (वनीपक): रक-भिखारी के समान काया से दीनता प्रकट करके, वचन से दीन भाषा बोल कर तथा मन मे दीनता लाकर आहार आदि लेना।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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