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________________ २. तत्व-विभाग पच्चीस बोल के स्तोक (थोकड़े) के शेष बोल सार्थ १, २, ३, ४, ५, ६, १०, १४, १५, १६, २२ और २३ वा -यो बारह बोल 'सुबोध जंन पाठमाला-भाग १ मे दिये जा चुके हैं। इसमे शेष रहे हुए ६, ७, ८, ११, १२, १३, १५, १६, १७, २०, २१, २४ और २५वा वोल-यो तेरह बोल दिये हैं। छठा बोल : 'दश प्रारण प्रारण : जिनके मिलने से जीव जन्मे, जिनके रहने से जीव जीवित रहे और जिनके बिछुड़ने से जीव मर जाय । १. श्रोत्रेन्द्रिय बलप्राण, २. चक्षुरिन्द्रिय बलप्रारण, ३. घ्राणेन्द्रिय बलप्रारण, ४. रसेन्द्रिय बलप्राण, ५. स्पर्शेन्द्रिय बलप्रारण, ६. मनोवल-प्रारण, ७. वचनबल-प्रारण, ८. काय वलप्राप, ६. श्वासोच्छ्रवास बल-प्रारण और, १०. आयुष्य बल-प्रारण। इनमें से १. स्पर्शेन्द्रिय बलप्रारण, २. काग-बल-प्राण, ३. श्वासोच्छवास बलप्राण और ४ प्रायुष्य बल-प्रारण-ये चार प्रारणएकेन्द्रियों को होते हैं। द्वीन्द्रिय को रसेन्द्रिय बल-प्राए और धन
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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