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________________ ८ ] सुवोध जन पाठमाला भाग २ प्र० नित्य उभयकाल आवश्यक से क्या लाभ है ? उ० · १ सामायिकादि आवश्यको का ज्ञान (स्मरण) रहता है। २ 'वे अवश्यकरणीय हैं'-यह श्रद्धा रहती है। ३. यदि व्रत ग्रहण किये हो, तो गृहित व्रतो की स्मृति रहती है, जिससे व्रतो का सम्यक्पालन होता रहता है। ४. यदि व्रत ग्रहण न किये हो, तो व्रत-ग्रहण की भावना होती है। ५. दिन-रात्रि मे कभी भी देव गुरु का स्मरण आदि न हुआ हो, तो कम-से-कम एक दिन-रात्रि में दो बार स्मरण आदि हो जाता है। ६ सम्यक्त्वादि मे लगे अतिचारो की शुद्धि होती रहती है। ७ यदि व्रत ग्रहण न भी किया हो, तो भी पाप के प्रति पश्चात्ताप होता है। ८ स्वाध्याय होता है। इत्यादि नित्य आवश्यक करने मे हमे कई लाभ हैं। हम नित्य आवश्यक करे, तो १. दूसरो को भी आवश्यक का महत्व ध्यान मे पाता है। २ वे भो आवश्यक का ज्ञान करते हैं। ३ इन्हें भी यावश्यक पर श्रद्धा होती है। ४ वे भी देव-स्तव और गुरु-वन्दना करते है। ५. वे भी पाप का पश्चात्ताप करते हैं और कदाचित् व्रत धारण भी करते है। इत्यादि हमारे नित्य पावश्यक से दूसरो को भी कई लाभ है। प्र० जैसे 'दीपावली आदि को घर-दुकान आदि को विशेष साफ किया जाता है, धुलाई-पुताई की जाती है, गत वर्ष के पाय-व्यय का मिलान किया जाता है, लक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है, घर-दुकान मे नई-नई वस्तुएँ नसाई जाती है। वैसे नित्य उभयकाल आवश्यक की अपेक्षा भी कभी विशेष प्रावश्यक भी किये जाते हैं क्या? जिससे प्रात्मा की विशेष शुद्धि हो, धार्मिक हानि-लाभ का ज्ञान हो, देव गुरु की विशेप स्तुति-वन्दना हो। अागामी वर्ष के लिए विशेप प्रत्याख्यान हो ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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