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________________ १९८ ] सुवोध जन पाठमाला-भाग २ प्र० उपाध्याय श्री, जव सामान्य साधुओ से विशिष्ट होते है, तव उनमे साधुओ से गुण कम क्यो ? उ० · चरण सत्तरी, करण सत्तरी मे, बहुत गुणो को संग्रहित कर दिया है। उन वोलो को पृथक् रूप मे गिनने पर उपाध्याय श्री मे साधुश्रो से गुण कम नहीं रहते। प्र० : सिद्ध धर्माचार्य क्यों नहीं होते हैं ? उ० : क्योकि, वे, शरीर रहित, मोक्ष मे पधारे हुए होते हैं, अतः वे किसी को धर्म उपदेश नही देते; इस कारण वे किसी के धर्म आचार्य नहीं होते। प्र०: श्रावक श्राविका धर्माचार्य कैसे हो सकते हैं ? उ० : जो भी धर्म का उपदेश देकर सम्यक्त्व प्रदान करे, उन्हे यहाँ धर्माचार्य कहा है। धर्म उपदेश, श्रावक श्राविका भी अन्य को देते हैं, इसलिए वे भी धर्माचार्य हो सकते हैं। प्र० : श्रावक धर्माचार्य का शास्त्रीय उदाहरण दीजिए। उ० : औपपातिक सूत्र मे अंबड (सन्यासी) श्रावक के शिष्यों ने अपने धर्मोपदेशदाता अबड को 'धर्माचार्य' कहा है।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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