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________________ सूत्र-विभाग-५३०: तैतीस-चोल' विस्तृत प्रतिक्रमण' '[१६९ बारसहि- - = बारह भिक्षु (साधु)-प्रतिभाएँ सम्यक् भिक्खू-पडिमाहि. - न,श्रद्धी हो, तेरसहि ।, ... 11: तेरह (मे से बारह क्रियाएं छोडीन किरिया-ठाणेहि . . हो तथा तेरहवी) क्रिया सम्यकन - - - - - श्रद्धी हो । ' चोहसहि .. : जीक के १४ भेद या- १४ गुणस्थान भूयग्गामहि । - - सम्यक् न श्रद्धे हो, ।। पररणरहि .. :: पन्द्रह परमाधर्मी बनने जैसे पाय परमाहम्मिहि । . .-, किये हों, . सोलसहि. २ । 118 श्री सूत्रकृतांग सूत्र के १६ अध्ययम गाहा-सोलसरहिं सम्यक् न श्रद्धे हो ? - सित्तरसविहे . :- + सत्रह : प्रकार का असंयम किया असंजमे अट्ठारसविहे; - - F अद्वारह प्रकार का अब्रह्मचर्य सेवा प्रबंभे किया हो - - - एगूरणवसाए. .. श्री.ज्ञाता सूत्र के १६ अध्ययन सम्यक गाय-भयहि . .. न श्रद्धे हो . . . वीसाए,... , . : बीस समाधि (उत्पन्न करने वाले) असमाहि-छारपेहि .. स्थान सेवन किये हों . एगवीसाए . आए , .. इक्कीस सबल (बडे) दोष सेवन सबलेहि . किये हों बावीसाए परिसहेहि : धर्म दृढ़ता और निर्जरा के लिए 'वावीस परीषह न जीते हो । तेवीसाए " " 'श्री सूत्रकृतरंग'सूत्र के (१६+७) २३ सूयगडझयहि । अध्ययन सम्यक् न श्रद्धे हो ' _ " चरेवीसाए देवेहि : चौवीस तीर्थकर या २४ देव सम्धक ।। ।। नभद्धे हो
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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