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________________ सूत्र-विभाग---'संतीस बोल' 'विस्तृत प्रतिक्रमण' [ १६७ समिए एसरणा-समिए समिति, एषणा समिति प्रायाग-भेड-मत्त- : प्रादान भाण्ड मात्र निक्खेवरणा-समिए निक्षेपणा समिति उच्चार-पासवरण-खेल- : उच्चार प्रश्रवण खेल जल्ल-सिंघारण-परिहा वरिणया जलसिंघाण परिस्था पनिका समिति न की हो समिए । पडियकमामि, : प्रतिक्रमण करता हूँ, छहिं जीव-निकाएहि छह जीवकाय पुढवि-काएरणं प्राउ-काएणं : पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउ-काएक वाउकाएरण : तेजस्काय, वायुकाय, वरणस्सइ-काएणं तस-काएरणं वनस् तिकाय, त्रस काय सम्यक न श्रद्धे हो पडिक्कमामि छह लेसाहिं : प्रतिक्रमण करता हूँ, कर्म : चिपकाने वाली यह लेश्याएँ १. किण्ह-लेसाए २. नील- : १ कृष्णलेण्या, २ नील लेश्या लेसाए ३ काउ-लेसाए ३ कापोत लेश्या को हो ४. तेउ-लेसाए ४. पउम- : ४ तेजोलेश्या, ५ पद्मलेश्या, लेसाए ६ सुक्क लेसाए ६. शुक्ल-लेश्या न की हो सहि भय-ट्ठारणेहि : सात भय-स्थान । १. जातिमद, २ कुलमद, ३ बलमद, ४. रूपमद, ५. तपमद, ६ श्रुतमद, ७ लाभमद, ८ ऐश्वर्यमद किया हो, नहिं बं चेर-गुत्तीहि : नव ब्रह्मचर्य गुप्ति (बाड) पहली वाड मे ब्रह्मचारो पुरुष, स्त्री (रिणी स्त्रो, पुरुष) पशु नपुसक रहित स्थान मे रहे, सहित स्थान मे नही रहे। यदि रहे, तो चूहे को बिल्ली का दृष्टान्त। दूसरी वाड मे ब्रह्मचारी
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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