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________________ १६२ ॥ सुवाष जैन पाठमाला--भाग २ पाठ २९ उन्तीसवाँ २५. 'चाउक्कालं सज्झायस्स' स्वाध्याय और प्रतिलेखना के अतिचारों का प्रतिक्रमण पाठ पडिक्कमामि चाउक्कालं सज्झायस्स प्रकरणयाए उभयो कालं . भण्डोवगररणस्स. : प्रतिक्रमण करता हूँ : चारो काल (चारो प्रहर, प्रतिलेखन काल, स्वाध्याय काल, भिक्षा काल, अकाल आदि को छोड कर) स्वाध्याय न की हो, : (प्रातः और सध्या) दोनों काल : भण्डोपकरण, (रजोहरण वस्त्र, पात्र, शय्या-सथारा उच्चार-प्रश्रवण भूमिका आदि का : प्रतिलेखन न किया हो, : या विधि से प्रमार्जन न किया हो, प्रमार्जन न किया हो, या विधि से प्रतिलेखन न किया हो, ' उससे जो अतिक्रम, व्यतिक्रम, : अतिचार, अनाचार लगा हो, यो अप्पडिलेहरणाए दुप्पडिलेहणाए अप्पमज्जरणाए दुप्पमज्जरणाए अइक्कमे, वइक्कमे, अइयारे, अरगायारें प्रितिमाघारी श्रावक तथा पोषध, संवर या क्या करने वाले भावकों को चारों काल स्वाध्याय करने के पश्चात् 'चाउषकाल' (या 'प्रागम तिविहे) का पाठ अवश्य पढना चाहिए तथा उमयकाल प्रतिलेखना करने के पश्चात् भी 'चाउकाल' का पाठ अवश्य पढ़ना चाहिए।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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