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________________ सूत्र-विभाग-२७ 'पगामसिज्जाए' प्रश्नोत्तरी । १५७ प्र० व्रतधारी या प्रतिमाधारी श्रावक को दिन मे सोना नही चाहिए, अतः उन्हे देवसिक प्रतिक्रमरण मे इस पाठ को बोलने की क्या आवश्यकता है? उ० • १. 'अर्द्ध निद्रित, पूर्ण निद्रित आदि अवस्थाओ के अतिचार भी प्रात्मा के दोषो से ही लगते हैं।' आदि सिद्धान्तो की श्रद्धा प्ररूपणा मे अन्तर पाया हो, तो उसके प्रतिक्रमण के लिए। जैसे कि-जिस दिन पौषध न किया हो, उस दिन भी ग्यारहवे पौषध व्रत का पाठ, ग्यारहवे पौषध व्रत की श्रद्धा प्ररूपणा मे अन्तर पाया हो, तो उसके प्रतिक्रमण के लिए बोला जाता है। २. दिन मे बैठे-बैठे भो कभी नीद आ सकती है, ऐसे समय मे लगे अतिचारो के प्रतिक्रमण के लिए। ३. उपसर्ग से रात्रि को नीद न आई हो, या दूसरो की रात्रि मे अधिक सेवा करनी पडी हो, उससे नीद म आई हो, विहार अति उग्र हुआ हो, आदि कारणो मे दिन में भी किसी को सोना पड जाता है। ऐसे समय मे लगे अतिचारो के प्रतिक्रमण के लिए भी यह पाठ देवसिक प्रतिक्रमण मे बोलना आवश्यक है।. ४. 'दिन मे अकारण नही सोना' इस मर्यादा का उल्लघन करके दिन मे सो जाने पर तो यह पाठ दैवसिक प्रतिक्रमण मे बोलना आवश्यक है ही।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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