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________________ सूत्र-विभाग--२६. 'चत्तारि मगल' मागलिक का पाठ [ १५१ कराने वाला वीरतापूर्वक अपने देह को शल्यकर्ता के सामने प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार अपने अतिचारो की आलोचना के लिए वीरतासूचक दाहिने घुटने को मोडकर खडा रक्खे और बाये घुटने को मोडकर भूमि पर लगा दे। फिर 'इच्छामि भंते ! तुम्भेहि अब्भणुण्णाए समारणे देवसिय रणारण देंसरण चरित्ता-चरित्त तव अइयार पालोएमि' (आलोचना करता हूँ) यह पाठ पढे। फिर नमस्कार मत्र और करेमि भते पढे। फिर निम्न मांगलिक का पाठ पढे। फिर 'इच्छामि पटिक्कमिउ' जो मे देवसिनो' इत्यादि 'इच्छामि ठामि' का पूरा पाठ कहे। फिर 'इच्छामि पडिक्कमिउ इरियावहियाए विराहणाए इत्यादि इच्छाकारेणं का पूरा पाठ कहे। फिर श्रावक सूत्र पढने वाले प्रागमे तिदिहे, अरिहन्तो महदेवो व बारह व्रत कहे। फिर बैठकर (बडी सलेखना, रगुच्चय का पाठ, प्रद्वारह पार व (इच्छामि ठामि) कहे। फिर तस्स धम्मरस केवलि पण्यत्तस्स बोलकर अगला पाठ खडे होकर कहे। तथा श्रमण सूत्र पढने वाले 'पगाममिज्जाए' आदि चार पाठ पढे और वे भी नमो चउवीयाए के तस्स धम्मस्स केवलि पण्णत्तस्स तक का पाठ बोलकर अगला पाठ खडे होकर कहे। फिर दोनो हा पूर्ववत् दो वार इच्छा म खमासमरणो दे। २२. 'चजारी मंगलं' मांगलिक का पाठ चत्तारि मगल १. अरिहता मंगल .: चार मगल (विघ्नविनाशक) है। : सभी अरिहन्त मगल हैं।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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