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________________ १४० ] १० सुक्क पुग्गलपरिसाडिएस वा ११. विगय-जीवकलेवरेसु वा १२ इत्थी पुरिस संजोगेसु वा १३. नगर निधमणेसु वा १४. सव्वेसु चेव श्रसुइ- ठाणेसु वा सुवोध जैन पाठमाला - भाग २ चाहिएँ : (रज) वीर्य के भूखे पुल पुनः आले होवे, उसमे . : मरे हुए मनुष्य के कलेवर ( शव ) मे : स्त्री-पुरुष के ( रज तथा वीर्य इन : दोनो के ) सयोग मे इन चवदह स्थानों मे उत्पन्न होने वाले सम्मूछिम मनुष्यो की विराधना की हो, तो दिन संबंधी तस्स मिच्छामि दुक्कडं । : नगर की नालियो मे (जहाँ उच्चारादि के साथ अन्य द्रव्य भी मिल जाते हैं) : और सभी ग्रशुचि स्थानो मे (जहाँ केवल ये या अन्य द्रव्य भी मिलते हो ) 'सम्मूच्छिम' प्रश्नोत्तरी प्र० मनुष्य सम्मूच्छिम की जानकारी दीजिए । उ० : शरीर से मल-मूत्र आदि पृथक् होने के पश्चात् गारीरिक उप्णता के अभाव मे जब वे शातल हो जाते है और गीले रहते हैं, तब उनमे कभी-कभी एक मुहूर्त ( ४८ मिनिट) से भी पहले मनुष्य की ही जाति और मनुष्य की ही प्राकृति के, पर अगुल के असख्य भाग जितनी अवगाहना ( लम्बाई-चौड़ाईजाडाई) वाले असख्य छोटे जीव उत्पन्न हो जाते हैं । वे बिना मन के होने से सम्मूच्छिम कहलाते है । उनका श्रायुष्य अन्तर्मुहूर्त जितना छोटा होता है । प्र० उनकी रक्षा के लिए मल-मूत्रादि कहाँ डालने -
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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