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________________ १२८ ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ पर मोक्षार्थी को सबसे पहले सम्यग्दर्शन, (सम्यक्त्व) अपनाना चाहिए, क्योकि उसके बिना तीनो मिलकर भी मोक्ष देने में समर्थ नहीं है। सम्यग्दर्शन अपनाने के पश्चात् तीनों मे से किसी को भी अपनाया जा सकता है। जैसे अजुनमाली के समान किसी से ज्ञान विशेप न हो सके, तो वह ज्ञानी की निश्रा मे विना ज्ञान सीखे सीवे ही व्रत अपना सकता है अथवा किसी से व्रतो का पालन कठिन हो और वह सीधे ही कदाचित् अनशन जैसे महातप को भी अपनाना चाहे, तो भी वह अर्हन्नक मुनि के समान सीवे ही तप भी अपना सकता है (तप.अपनाने वाले मे चारित्र भी होता तो है, पर उसकी गौरगता और तप की मुख्यता होती है, अतः ऐसा कहा है) पर यथा सम्भव ज्ञान, चारित्र और तप तीनो साथ मे अपनाना चाहिए, जिससे आत्म-विकास मे सुविधा रहे। . प्र० · बारह व्रत जिस क्रम से बताये है, क्या उन्हे उसी क्रम से अपनाना चाहिए ? उ० सभी को साथ मे क्रम से अपनाना अधिक उत्तम है। पर यदि किसी को कोई मध्य का व्रत अपनाने मे कठिनता हो या उसे पूरा अपनाने में कठिनता हो, तो वह उस व्रत को छोडकर या उसे अश से अपना कर अगला व्रत अपना सकता है। प्र० . उदाहरण देकर समझाइए। उ० जैसे कई लोग, जो वारह व्रत क्रम से नहीं अपनी पाते, वे सप्त व्यसन का त्याग करते है। जिसमे सबसे पहले १ मासाहर और २. मद्यपान छोडते है, जो सातवे व्रत के उपभोग-परिभोग का आगिक त्याग है तथा ३ शिकार छोड़ते हैं,
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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