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________________ सूत्र-विभाग---२०. 'सलेखना' प्रश्नोत्तरी [ १२१ मनोरथ पाठ ' 'ऐसी मेरी सहहणा प्ररूपणा तो है, संलखना का अवसर प्राये, सलेखना करूँ, तब फरसना करके शुद्ध होउं । अतिचार पाठ ऐसे अपच्छिम मारणांतिय सले- अपश्चिम मारणान्तिक सलेखना, 'हणा झूसरणा पाराहरणाए पंच झूषणा, आराधना के विषय मे अइयारा 'जारिणयचा न 'जो कोई अतिचार लगा हो, तो समायरियव्वा तंजहा ते- आलोउ - . पालोउ - १. इह-लोगा- : इस (मनुष्य) लोक के राजा चक्रवर्ती ससप्प प्रोगे प्रादि सुखो की इच्छा की हो, २ परलोगा : पर (मनुष्य से अन्य) लोक के देवता ससपनोगे इन्द्र श्रादि सुखो की इच्छा की हो, ३. जीविया-संसप्पप्रोगे : (शाता और सेवा-प्रशसा देखकर) - बहत काल जीने की इच्छा की हो, ४. मरणा-ससप्पनोगे : (अशाता और असेवा-अकीति देखकर) शीघ्र भरने की इच्छा की हो, ५. काम-भोगा- : (आहार आदि की या देवप्रदत्त । काम सस पोगे भोगो की इच्छा की हो, जो मे देवसियो : इन अतिचारों मे से मुझे जो कोई सइयारो को दिन संबंधी अतिचार लगा हो, तो तस्स.मिच्छा मि दुपकर्ड। 'सलेखना' प्रश्नोत्तरी प्र० : यहाँ सलेखना के व्रत पाठ से क्या समझना चाहिये? उ० 'सलेखनर सव तपो मे मुख्य है, तथा उसका श्रावक .. . ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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