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________________ सूत्र-विभाग-~~१६ 'अतिथि संविभाग व्रत' व्रत पाठ [ ११३ है। व्रतधारी मध्यम पात्र है और स्वधर्मी (सम्यक्त्वी) जघन्य निम्न पात्र है। प्र० : दीन-दुःखियो को दान देना इस व्रत मे आता है या नहीं? उ० : दीन-दुखी अनुकम्पा-दान के.पात्र हैं। अनुकपा से पुण्य कर्म का बध होता है। धर्म का उद्देश्य कर्मबन्ध को तोडना है, अतः जिन्हे दान देने से मुख्यतया निर्जरा होती है, उन साधु-सोची आदि को दान देना ही इस व्रत मे लिया है। प्र० : प्राधाकर्म आदि दोष किसे कहते है ? उ० साधु के लिए अशनादि बनाना, उनके लिए खरीदना आदि को। विशेष के लिए 'समिति गुप्ति का स्तोक' । देखो। प्र० ' क्या प्रासुक एषणीय दान ही देना चाहिए ? उ० : जो जैसा पात्र हो, उसके अनुसार उसे दान दिया जाता है। निर्दोष अशनादि लेने वाले को निर्दोष ही देना चाहिए। प्र० • क्या देय वस्तुएँ चौदह ही है ? उ० ये चौदह वस्तुएँ प्राय काम मे आती हैं, अत इनका उल्लेख किया है। इनसे अन्य भी धर्मोपयोगी सूई, कैची, पुस्तक आदि समझ लेने चाहिएँ। प्र० : 'सचित्त निक्षेप' के उदाहरण दीजिए। उ० : जैसे रोटी-पात्र को लवण-पात्र पर रखना, धोवनपात्र को सचित्त जल के घडे पर रखना, खिचडी आदि को चूल्हे · पर रखना, मिठाई आदि को हरी पत्तल पर रखना श्रादि ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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