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________________ सुवोध जैन पाठमाला - भाग २ : प्रत्याख्यान करता हूँ : अस्त्र, जैसे मूशल आदि को काम मे : लेने रूप सावद्य योग सेवने का १०२ ] का पच्चवखारण ४. सत्य - मुसलादि सावज्ज-जोग सेवन का पच्चवखारण : प्रत्याख्यान करता हूँ जाव अहोरतं पज्जुवासामि । दुविह तिविहेर न करेमि, न कारवेमि, मरणसा, वयसा, कायसा । मनोरथ पाठ ऐसी मेरी श्रहरणा प्ररूपणा है, पौषध का श्रवसर श्राये, पौषध करूँ, तब फरसना करके शुद्ध होऊँ । अतिचार पाठ ऐसे ग्यारहवें प्रतिपूर्ण पौषध व्रत के पंच श्रइयारा जारिणयव्वा न समायरियन्वा तं जहा-ते श्रालोउं - ग्यारहवे प्रतिपूर्ण पौषध व्रत के विषय मे जो कोई प्रतिचार लगा हो, तो प्रालाउ - १. अप्पडिले हिय - दुष्पडिले हिय : पौषध मे गय्या-सथारा न देखा सेज्जा- संथारए ( न प्रति लेखा ) हो या अच्छी तरह ( विधिसे ) न देखा हो । २ अप्पमज्जिय- दुप्पमज्जिय: पूँजा न हो या अच्छी तरह सेज्जासथारए (विधि) से पंजा न हो । तिस्स भते । ४.। दोनों स्थानों पर इतना पाठ और मिलाकर इस व्रत पाठ से पौषध लिया जाता है । शेष विधि सामायिक के समान । शेष इस प्रतिचार व प्रतिक्रमरण पाठ से पौषध पाला जाता है । विधि सामायिक पालने के समान है । मित्रता यह है कि 'सम्म के पहले ( पडिपुण) पोसह' बोलना चाहिए । ....... काए "
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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