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________________ 50 ] २३. उवाहरण-विहि २४. सयरण - विहि २५. सचित्त - विहि २६. दव्व विहि इत्यादि का यथा परिमाण किया है सुबोध जैन पाठमाला - भाग २ : जूते, मोजे आदि की विधि : ( सोने वंठने योग्य) वस्त्र पलगादि की विधि ऐसा सातवाँ उपभोग परिभोग दुविहे, पण्णत्ते तंजहा - १. भोयरा य २. कम्मो य । : ( नमक पानी यादि) सचित्त की विधि : ( भिन्न नाम व स्वाद वाले) पदार्थो की विधि : तथा घडी, पात्र प्रादि शेष रहे हुए द्रव्यों का परिमारण करता है इसके उपरान्त उपभोग परिभोग वस्तुनों को भोग निमित्त से भोगने का पच्चवखारण ( करता हूँ) जावज्जीवाए । एगविहं तिविहेां न करोमि, मरगसा वयसा कायसा । प्रतिचार पाठ भोरणाओ समरणोवास एवं पंच प्रइयारा जारिणयव्वा न समायरियन्वा तं जहा --- ते श्रालोडं- : सातवाँ उपभोग परिभोग : ( दो प्रकार का कहा गया है : वह इस प्रकार : भोजन की अपेक्षा से और : कर्म की अपेक्षा से । : भोजन की अपेक्षा) : परिमारण व्रत के विषय मे जो कोई अतिचार लगा हो, तो ग्रालो ---
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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