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________________ ६८] जैन सुवोध पाठमाला-भाग १ पश्चात् बोला जाता है तथा सामायिक लेते समय कायोत्सर्ग मे भी बोला जाता है। प्र० : इच्छाकारेण के पाठ का दूसरा नाम क्या है ? उ० : आलोचना का पाठ । प्र० : इसे आलोचना का पाठ क्यो कहते हैं ? उ० : इससे जीव-विराधना की आलोचना की जाती है, इसलिये। प्र० : विराधना किसे कहते है ? उ० : १. जीवो को दुख पहुँचाने वाली क्रिया को तथा २. जीवों को दु.ख पहुँचना। प्र० : क्या चलने से ही विराधना होती है। उ० : नही। उठने से, वैटने से, हाथ-पाँव पसारने से, सिकोड़ने से आदि क्रियायो से भी जीव-विराधना होती है। प्र० : तव इच्छाकारेण से चलने से होने वाली जीव-विराधना की ही आलोचना क्यो की है ? उ० : जैसे 'रोटी खाई'-इस वाक्य मे रोटी शब्द से शाक, दाल, चावल आदि सव आ जाते हैं। इसी प्रकार यहाँ चलने से होने वाली जीव-विराधना की आलोचना से सभी प्रकार से होने वाली जीव-विराधना की आलोचना की गई समझनी चाहिये। प्र० : जीव-रक्षा के लिए यदि किसी जीव को एक स्थान से दूसरे सुरक्षित स्थान पर पूँज कर हटावे, तो क्या विराधना का पाप लगता है ? उ० : नही। विना कारण सुख से बैठे जीवो को इधर-उधर पूंज कर हटाना ठीक नही है। पर रक्षा के लिए तो
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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