SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ । जैन सुवोध पाठमाला-भाग १ (तीनो की ओर लक्ष्य करके) जैसा तुम तीनो ने नाम पाया है, उसे निरर्थक न बनाते हुए सार्थक बनायो। इतने में गाला के अन्य सभी छात्र साथ मे ही अनुशासन व व्यवस्थापूर्वक शाला मे प्रविष्ट हुए। उन्होने क्रम से खडे होकर श्रावकजी का अभिवादन किया। फिर उसमे से एक प्रतिनिधि छात्र ने कहा-श्रावकजी। हम सभी आपके स्वागत के लिए स्टेशन गये थे। वहुत समय तक वहाँ गाडी की प्रतीक्षा करते रहे। फिर जानकारी हई कि आप मोटर से पधार गये है। हम आपका स्वागत न कर सके-इसका हमे वहुत खेद है। शाला मे पहुँचने मे भी विलम्ब हुयायाशा है, आप हमे क्षमा करेंगे। अध्यापकजी ने स्वागत आदि का उत्तर देते हुए कहा : मैं आपके १. अनुशासन, २. व्यवस्था और ३ विनय से प्रसन्न हूँ। जानकारी न होने के कारण हुई भूल को भी आपने भूल स्वीकार की इससे मेरे हृदय मे आप सभी आज से ही वस गये हैं। आपके ज्ञान और चारित्र की वृद्धि हो यह मैं शुभकामना करता हूँ। इस समय तक जैनगाला का समय समाप्त हो चुका था। श्रावकजो यात्रा से थके हुए भी थे, फिर भी वे चाहते थे कि अध्ययन प्रारम्भ किया जाय और कुछ समय चलाया जाय, परन्तु छात्रो ने श्रावकजी के विश्राम के लिए अध्ययन स्थगित रक्खा और शाति के साथ विसर्जित हो गये ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy