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________________ । ५९ - पाठ १५-विवेक • . उपकारनाथ अवश्य ही ऐसे हैं, जिनसे शिक्षा ली जा सकती है। परन्तु इनकी पूंजनी और माला की क्या अवस्था है ? ये केवल अपनी मुख-वस्त्रिका सजाने का काम करते है। पंजनी और माला के प्रति ध्यान नही देते। इंनकी डण्डी पर न तो फलियाँ ठीक लिपटी हुई हैं, न उन्हे डोरे से ठीक बाँधा गया है। 'फलियाँ ऊँची-नीची दीख रही हैं और डोरा लटक रहा है ।। माला का डोरा चार बार तोड दिया। जहाँ-तहाँ उसने गाँठे लगा दी हैं और एक स्थान पर तो अब तक गॉठे भी नही लगी है। मरिगयाँ कई बार बिखर चुकी हैं। अब _ इनकी माला मे ८० मणियाँ भी नही रही होगी। , , ! अध्या० : उपकारनाथ | तटस्थकुमार जो-कुछ कह रहा है, यदि वह सत्य है, तो वैसा नहीं होनी चाहिए । उपकरण धर्म में सहायक हैं, उनकी उपेक्षा अच्छी नही। उनको सदा व्यवस्थित और सम्भाल कर रखना चाहिए और हॉ, देखो, उपकारनाथ ! 'यदि कोई असत्य बोलता भी हो, तो उसके प्रति व्यग करना, क्रोध करना या कलहभरी वाणी कहना ठीक नहीं । अच्छे विद्यार्थियो-को शात रहना चाहिए। प्रत्येक विद्यार्थी को अपना मित्र समझते हुए उसके साथ 'मित्रता बने और मित्रता बढे-ऐसी वारणी बोलनी चाहिए। पुत्र की कलहभरो वारणी माँ को भी अच्छी नही लगती, तो वह दूसरो को कैसे अच्छी लग सकती है ? सदा ही मिश्री-सी मधुर वाणी बोलनी चाहिए। (तटस्थकुमार की ओर देखते हुए) और देखो,
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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