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________________ ५२ ] जन सुवोध पाठमाला--भाग १ जयन्त : इसमे जो फुन्दा लगा है, उसे क्या कहते है ? विजय : उसे 'मेरू' कहते हैं। उसकी मरिण में गिनती नहीं है। वहाँ पहुचने पर माला समाप्त हो जाती है। जयन्त : यह माला सादी और अल्प मूल्य वाली क्यो है ? विजय : क्योकि मन धर्म में लगा रहे, इसके रूप-रग मे मन न चला जावे। जयन्त : (एक छोटी-सी पुस्तक उठाकर देखते हुए) यह पुस्तक किसकी है ? (कुछ पन्ने उलट कर) इसमें सब अंक ही अक क्यो हैं तथा २-५-३-१-४ यों उल्टे सुल्टे अक क्यो हैं ? विजय : यह पुस्तक आनुपूर्वी की है। इसमे छपे हुए अंको के इस क्रम को आनुपूर्वी कहते हैं। इसमे जहाँ जो अक है, वहाँ नमस्कार मन्त्र के उस अंक वाले पद का उच्चारण किया जाता है। जैसे, जहाँ एक है, वहाँ 'णमो अरिहतारण' का उच्चारण किया जाता है। इसमे सव २० कोष्ठक (कोठे) हैं। प्रत्येक कोष्ठक में १ से ५ तक अंक ६ वार दिये हैं। इसलिए आनुपूर्वी को गिनने से नमस्कार मन्त्र का १२० वार स्मरण हो जाता है। इसमे उल्टे-सुल्टे अंक इसलिए हैं कि मन स्थिर रह सके। क्योकि मन स्थिर रहे विना 'कहाँ क्या वोलना'-इसका ध्यान नहीं रह सकता। जयन्त : मन स्थिर करने की क्या आवश्यकता है ? विजय : स्थिर मन से किया हुआ जप आदि काम अधिक फलदायी होता है। जयन्त : और यह पुस्तक किसकी है। इसमे यह सब क्या लिखा है ?
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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