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________________ २६ 7 जन सुबोध पाठमाला--भाग १ साधुओ के दर्शन करते समय हमे क्या करना चाहिए और साधु उस समय हमारे लिए क्या करते है ?' एक वार श्री उत्तमचन्द्रजी अपने पुत्रों को साधु दर्शन कराने के लिए और 'सम्यक्त्व सूत्र' दिलाने के लिए राजस्थान के अपने नगर मे लाये। वहाँ उस समय पाचार्यश्री विराजते थे। दर्शन कराने के लिए जाते समय श्री उत्तमचन्द्रजी ने पुत्रो से कहा-देखो, साधु-दर्शन के समय 'अभिगमन' का पालन करना चाहिए। दया : 'अभिगमन' का अर्थ क्या है ? पिता : दर्शन के लिए अरिहतादि के सामने जाते समय पालने योग्य नियमो को 'अभिगमन' कहते है। मंगल : 'अभिगमन' कितने है ? पिता : पाँच हैं। पहला है 'सचित्त का त्याग' । दया : इसका अर्थ क्या है ? पिता : दर्शन के समय पास रही हुई छोडने योग्य सचित्त (जीव सहित) वस्तुप्रो को छोड़ना। जैसे दर्शन के समय पैरो मे मिट्टी आदि लगी नही रहनी चाहिए (पृथ्वीकाय का त्याग) पानो या वर्षी की बूंदे लगी नही रहनी चाहिएँ। हाथ मे कच्चा पानी का लोटा आदि नही रहना चाहिए (अपकाय का त्याग)। मुंह मे धूम्रपान आदि नही चलना चाहिए, हाथ मे बेटरी अादि जलती हुई या मशाल आदि नही होनी चाहिए (तेजस्काय का त्याग)। पखा झलते हुए नही रहना चाहिए (वायुकाय का त्याग)। मुंह मे पान चबाते हुए या कोई सचित्त वस्तु खाते हुए नही रहना चाहिए। केश आदि मे फूल आदि लगे नहीं रहना
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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