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________________ पाठ ७--तीर्थंकर और तीर्थ [ १६ पुत्र : कुछ लोग ६ठे तीर्थकरजी को पदमप्रभु, ८वे तीर्थंकरजो को चन्दाप्रभु और १८वे तीर्थंकरजी को अरहनाथजी कहते है, वे अशुद्ध हैं। माँ : क्या वर्तमान मे भी तीर्थंकर विद्यमान हैं ? पुत्र : हाँ, महाविदेह क्षेत्र मे वर्तमान मे बीस तीर्थकर विद्यमान माँ : उनके नाम क्या हैं ? पुत्र : १. सीमधर स्वामीजी ११. व्रजधर स्वामीजी २ युगमन्दिर स्वामीजी १२. चन्द्रानन स्वामीजी ३ वाहु स्वामीजी १३ चन्द्रबाहु म्वामीजी ४ सुबाहु स्वामीजी १४ भुजग स्वामीजी ५ सुजात स्वामीजी १५. ईश्वर स्वामीजी ६ स्वयप्रभ स्त्रामोजो १६. नेमीश्वर स्वामीजी ७ ऋपभानन स्वामीजी १७ वीरसेन स्वामीजी ८ अनतवीर्य स्वामीजी १८. महाभद्र स्वामीजी है सूरप्रभ स्वामीजी १६ देवयश स्वामीजी १० विशालधर स्वामीजी २०. अजितवीर्य स्वामीजी माँ : जानते हो बेटा। अपने भगवान् महावीर स्वामीजी के गणधर कितने हुए? पुत्र : हाँ, माँ । ग्यारह गणधर हुए। उनके नाम इस प्रकार हैं : १. श्री इन्द्रभूतिजी ७. श्री मौर्यपुत्रजी २ श्री अग्निभूतिजी ८. श्री अकपितजी ३. श्री वायुभूतिजी ९ श्री अचलभ्राताजी ४ श्री व्यक्तभूतिजी १० श्री मैतार्यजी ५ श्री सुधर्मा स्वामीजी ११. श्री प्रभासजी ६. श्री मण्डितजी
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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