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________________ २७८ ] जैन सुबोध पाठमाला मस्तक चरणो मे धरते, दोनो हाथो से छूते । मे ॥२॥ कष्ट हुआ हो क्षमा करो ।। चरण कमल ग्रहो रात्र क्या शुभ वीता ? सयम मे न रही सुख शांता का उत्तर दो || चरण कमल जो अपराध हुए हमसे दूर हरे मनव च निष्फल ग्राशातना करो || चरण कमल } - भाग १ -~ · • वाघा मे .. 11311 • . तन से | मे ॥४॥ ७ वीर व उनके शिष्यों की स्मृति .. [ तर्ज कभी सुख हैं कभी दुख है ] ? घिरे मन बच तन के योग बुरे, हम कषाय से झूठ दिखावा मिथ्या हो ॥ चरण कमल हम हैं भूलो के सागर पर हैं ग्राप क्षमासागर | "पारस" का उद्धार करो || चरण हुए । मे ॥५॥ ' कमल मे ||६|| - 'इच्छामि खमासमरणों' के भावों पर । साधु जिनेश्वर वीर और उनके, शिप्य ग्रव याद आते हैं । - हरप करते भजन गाते, वडो को सर झुकाते है ||र || जिनेश्वर उसा कौशिक अंगूठे मे, वहाई दूध की धारा । क्षमा का वोध दे तारा, प्रभु वे याद आते है ||१|| : गये ग्रानन्द श्रावक घर, भूल तत्क्षण क्षमाने को । जो चौदह-पूर्वी होकर भी, वे 'गौतम' याद आते है ||२|| साध्वी • पिता बिछुडे मिधाई माँ विको श्रीर भोयरे डाली । न फिर भी धैर्य त्यागा, वे 'चन्दना' याद ग्राती हैं ||३|| श्रावक : देव मिथ्यात्वधारी के, कठिन परिषह सहे तीनो । तथापि व्रत न खाखा, वे 'कामदेव' याद आते है ॥४ ॥
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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