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________________ २३४ ] जन सुबोध पाठमाला--भाग १ यक्ष के कारण हुई। मुद्रपाणि यक्ष लौकिक देव था। वह अज्ञानी, अवती, मिथ्यात्वी, रागी और द्वेपी था। निर्दोप अरिहतदेव को छोडकर ऐसे सदोष अन्य देव-देवियो की श्रद्धा करने का, भक्ति करने का व पूजा करने का कई बार ऐसा दुष्फल होता है। ये देव वस्तुत. हमारी कोई सहायता नहीं करते। यदि पूर्व मे हमारे ही कुछ शुभ पुण्य कर्म कमाये हुए हो, तो ये कुछ सहायता करते है। परन्तु दुख देने वाले मूल कारण जो कर्म है, उन्हे ये नष्ट नहीं कर सकते तथा नये अानेवाले कर्मो को ये रोक भी नही सकते । वरन् कई बार ये नये पापों मे डालकर अधिक पापी बना देते हैं, जैसा कि अर्जुनमाली के लिए हुआ। यदि अर्जुन ली मुद्रपाणि यक्ष की पूजा न करता, तो उसे हत्यारा वनना नहीं पड़ता। एक अरिहत ही ऐसे देव है- 'जिनकी श्रद्धा, भक्ति व पूजा हमारे पुराने कर्मों का क्षय करती है और नये पाते हुए पाप-कर्मों को रोकती है।' जब पूराने कर्मो का धीरे-धीरे क्षय हो जाता है और नये पाप-कर्मो का वध नही होता, तो आत्मा निर्मल वन जाती है, और उस पर कभी कष्ट नही पाता। सामान्य मनुष्य तो क्या देव-शक्ति भी उस पर वार नही कर पाती। यहो आगे इस दृष्टान्त मे बतलाया जायेगा। अर्जुनमाली के द्वारा हत्या चलते-चलते जब १६३ दिन हो गये, तव राजगृही मे अरिहंतदेव श्री भगवान् महावीर स्वामी का पधारना हुना। वे गुगशील नामक चैत्य (व्यन्तरायतन) मे विराजे। राजगृह मे ये समाचार पहुँचे, पर कोई अरिहत दर्शन का साहस नही कर सका। सभो अर्जुनमाली के मुद्दर से डरते थे। सभी को धर्म से अपने प्राण अधिक प्यारे थे।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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