SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ अब मैं अपनी दो अॉखे छोडकर शेप सारा शरीर सन्तो की सेवा मे समर्पित करता है।' पुनः स्थिरता इस निर्णय को मेघकुमार ने जीवन भर निभाया। बीच मे थोडे समय के लिए हुई चचलता उनके जीवन मे एक कहानी मात्र वन गई। वे फिर कभी विचलित नही हुए। वरन् उन्होने सन्तो की सेवा के साथ ही साथ वडी-वडी उग्र (कठोर) तपश्चर्याएँ भी की। अन्तिम समय मे उन्होने भगवान् की अाज्ञा लेकर सथारा सलेखना भी किया और समाधिपूर्वक काल किया। वे काल करके अनुत्तर (सवसे बढकर) देवलोक मे उत्पन्न हुए। आगे वे मनुष्य बनकर, दीक्षा लेकर और कर्म क्षय करके सिद्ध बनेगे। धन्य है, भगवान महावीर जैसे कुशल धर्माचार्य ! और धन्य हैं, मेघकुमार जैसे विनीत अन्तेवासी ! ॥ इति ४. श्री मेघ-कुमार (मुनि) की कथा समाप्त ॥ -श्री ज्ञातासूत्र, प्रथम अध्ययन के आधार पर । शिक्षाएँ १ स्वय कष्ट सहकर भी अनुकम्पा-भाव से दूसरो की रक्षा करो। २. अनुकपा (दया) धर्म का मूल है। ३ उत्कृष्ट वैरागी के भाव भी गिर जाते है। ४. गिरे हुए को और मत गिरायो, न उसका दृष्टात दो। ५. उसे मधुरता और कुशलतापूर्वक शिक्षा देकर पुन. ऊपर उठाओ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy