SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ ] जन सुबोध पाठमाला--भाग १ . योग्य वय वाले हो जाने पर महाराजा ने पाठ सुन्दरी कन्याओं के साथ उनका पाणिग्रहण कराया। युवक मेघकुमार अव अपनी अनुरागिनी रानियो के साथ अपने लिए स्वतन्त्र बनाये हुए राजभवन मे अत्यन्त सुख के साथ रहने लगे। वैराग्य कुछ समय के बाद भगवान महावीर वहाँ राजगृही में पधारे। मेघकुमार भी वन्दन-श्रवण के लिए समवसरण में गये। भगवान् का उपदेश सुनकर उन्हे वैराग्य हो गया। उन्होने भगवान् से कहा 'भगवन् । मैं माता-पिता को पूछ, कर आपके पास दीक्षा लंगा।' भगवान् ने कहा-'तुम्हे जैसे सुख हो, वैसा करो (अर्थात् जिस प्रकार के धर्म को निभाने मे तुम आत्मग्लानि का अनुभव न करो, उसे स्वीकार करो), पर इस धार्मिक कार्य में प्रतिबन्ध (किसी प्रकार की रुकावट या विलम्ब) मत करो। आज्ञा के लिए माता-पुत्र की चर्चा मेघकुमार ने वहाँ से राजभवन मे पहुँच कर माता-पिता से दीक्षा की याज्ञा मागो। महारानी धारिगो अपने पुत्र के मुख से दीक्षा की पाना के अप्रिय वचन सुन कर मूछित हो गई। दासियो के द्वारा चेतना लाने पर उसने कहा-'१. पुत्र ! जव हम काल कर जाये, तब तुम दोक्षा ले लेना। हम तुम्हारा वियोग क्षगा भर भी सहन नही कर सकते।' मेघकुमार ने कहा--'माता-पिता ! यह पायुप्य बिजली आदि के समान चचल है। इसका कोई विश्वास नहीं कि 'यह कव तक रहेगा?' कौन जानता है, माता-पिता ! कि कौन पहले जायगा और कौन पीछे ?'
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy