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________________ २०६ ] जन सुबोध पाठमाला-भाग १ ३. माता सिधा गई। अव उसके लिए कौन रहा? उसका __ मुंह कुम्हला गया। 'हा | अव मेरी कैसो दशा होगी? यह दुष्ट मेरी माँ को तो मार चुका, अव मुझे न-जाने किम हाथ वेचेगा? मेरे कुल-शील की रक्षा कैसे होगी?' वह इन सङ्कट की घडियो मे धर्य के साथ नमस्कार-मन्त्र का स्मरण करने लगी। नाविक वसुमति को लेकर कौशाम्बी नगरी मे पहेचा । वहाँ उसने वसुमति को चार मार्ग मे (चौराहे पर) खडी की। उसके मस्तक पर घास रखा और २० लाख सोने को मोहरो मे दासी के रूप मे वेचने लगा। उधर से 'धनावह' नामक सेठ निकले। उन्होने वमुमति को विकते देखा। वमुमति के १ रूप-रङ्ग को, २. वेश को, ३ लक्षण को और ४. मुखाकृति को देखकर धनावह सेठ ने अनुमान लगा लिया कि 'यह कोई राजपुत्री अथवा सेठ की लडकी दिखती है। कही कोई हीन कुल वाला इसे खरीद न ले और इसके कुल-गील पर आपदा न आवे, इसलिए मै ही इसे खरीद लूं। हो सकता है कि कुछ दिनो तक यह मेरे घर रहे और उसके पश्चात् इसके माता-पिता भी इसे पा मिले।' धनावह सेठ के घर में धनावह सेठ ने इन विचारो से उस नाविक को मुंहमांगा धन देकर वसुमति को ले ली। धनावह सेठ उसे लेकर अपने घर पहुँचे । उनकी पत्नी का नाम 'मूला' था। मूला से कहा'लो प्रिये । यह गुणवती कन्या। हमारी कोई सन्तान नही है, इससे अव हम अपनी सन्तान की भावना पूरी करे।' मूला ने भी वसुमति को पुत्री के रूप मे स्वीकार कर लिया।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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