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________________ कथा - विभाग- २. गरवर श्री इन्द्रभूतिजी [ २०३ श्री इन्द्रभूतिजी को भगवान् महावीरस्वामीजी 'गोतम ।' कहकर बुलाते थे, इसलिए ये गौतमस्वामीजी के रूप मे प्रसिद्ध हुए | बोलो, श्री गौतमस्वामी की जय ! ॥ इति २. गणधर श्री इन्द्रभूतिजी की कथा समाप्त ॥ शिक्षाएँ १ तीर्थंकर के चरणों मे सभी झुक जाते हैं । २. जीवादि सभी तत्व वास्तविक है । ३ सदा ही ज्ञान-पिपासा बनाये रक्खो । ४. ज्ञान के साथ तप भी करो । ५. नत्र, मधुर, स्वधर्मी - वत्सल, मर्यादापालक आदि गुरणयुक्त बनो । प्रश्न १. श्री इन्द्रभूति के देशादि का परिचय दो। २ श्री इन्द्रभूतिजी भगवान् के शिष्य कब व कैसे बने ? ३. श्री गौतमस्वामीजी से मिलने वाली शिक्षाएँ सप्रसग लिखिये | ४ श्री गौतमस्वामीजी और भगवान् महावीरस्वामीजी का परस्पर संबंध बताओ । ५. श्री गौतमस्वामीजी के श्रायु-विभाग का वर्णन करो ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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