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________________ उ० ४] जन सुवोध पाठमाला-भाग १ जगती है। ३. पीछे हम वैसे ही बनते हैं। १. विनय से थोडे पापो का नाश होता है। २ वैमे । ही बनने की भावना से अधिक पापो का नाश होता है। ३. वैसे ही बनते-बनते और सिद्ध वनने के पहले सभी पापो का नाश हो जाता है। प्र०, नमस्कार मत्र का स्मरण कौन करता है ? उ०: जो नमस्कार मत्र स्मरण का लाभ जानता है तथा नमस्कार मंत्र पर श्रद्धा रखता है, वह नमस्कार मत्र का स्मरण करता है। प्र० - नमस्कार मत्र का स्मरण कहाँ करना चाहिए ? नमस्कार मत्र का स्मरण कही भी किया जा सकता है। कम-से-कम स्मरण करने वाले को प्राय एकान्त स्थान मे या धर्म के स्थान पौपधशाला आदि मे या मुनि-महासतियों के स्थान मे या स्वधर्मी वन्धु-बहिनो के साथ वाले स्थान मे नमस्कार मत्र का स्मरण करना चाहिये। प्र०: नमस्कार मत्र का स्मरण कब करना चाहिए ? उ०: जव भी समय मिले। कम-से-कम नित्य प्रातःकाल उठते समय और रात्रि को सोते समय नमस्कार मत्र का स्मरण अवश्य करना चाहिए। नये कार्य के प्रारम्भ के समय भी अवश्य स्मरण करना चाहिए। प्र० : नमस्कार मंत्र का स्मरण किन भावो से करना चाहिए ? उ०: १ आप (अरिहतादि) पाँचो नमस्कार करने योग्य हैं। २. मैं भी आप जैसा कव वनूंगा? ३. मेरे सभी पापों का नाश हो। प्र०: नमस्कार मत्र का स्मरण कितनी वार करना चाहिए ?
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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