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________________ १८४ ] जन सुबोध पाठमाला--भाग १ यह देखकर गौतम स्वामी ने इसका कारण पूछा। तब भगवान् ने देवानन्दा को अपनी माता बतलाते हुए पिछला सारा इतिहास प्रकट किया। भगवान् का उपदेश सुन कर ऋषभदत्त और देवानन्दा दोनो दीक्षित हए और सयम पालन कर कर्म-क्षय करके सिद्ध हुए। जमाई जमाली की दीक्षा व फिर अश्रद्धा जव देवानदा व ऋषभदत्त दीक्षित हुए, उसी समय की वात है। 'क्षत्रियकुण्ड' ग्राम में रहने वाले भगवान् की सासारिक पुत्री प्रियदर्शना के पति, सासारिक जमाई जमाली ने भी भगवान महावीर स्वामी के उपदेश को सुनकर अत्यन्त वैराग्य के साथ प्रव्रज्या (दीक्षा) ली थी। उनके साथ ५०० अन्य कुमार भी दीक्षित हुए थे। पढ-लिख कर विद्वान हो जाने के पश्चात् भगवान् की श्राज्ञा न होते हुए भी वे अपने साथ दीक्षित हुए सन्तो को साथ मे लेकर स्वतन्त्र विचरण करने लगे। एक बार उन्हे बीमारी हुई। उस समय उनकी श्रद्धा पलट गई । वे भगवान के प्रतकूल रहने और कहने लगे। जमाली ने जीवन मे दृढतापूर्वक श्रेष्ठ क्रिया की, परन्त विपरीत श्रद्धा और भगवान के प्रतिकल रहने-कहने से वे कि िवषी (पापी) देव बने । जब तक उन्होने भगवान की वाणी पर श्रद्धा रखते हए भगवान् के अनुकूल रह कर धर्म-क्रिया की, तब तक उन्हे अच्छा फल प्राप्त हुआ। यदि वे जीवन भर वसे ही रहते, तो उसी भव मे माक्ष प्राप्त कर लेते। पर वैसे न रहने के कारण अव वे चार गति के चार-पाँच भव करके मोक्ष प्राप्त करेंगे।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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