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________________ कथा-विभाग-१. भगवान् महावीर [ १५७ मिली। ५६ छप्पन दिशा-कुमारियो ने आकर भगवान् का । शुचि-कर्म, सगल-गान आदि कार्य किया। उसी समय अच्युत प्रादि वेसठ इन्द्र तो अपने परिवार सहित मेरु पर्वत पर गये और शन्द्र भगवान् के जन्म-स्थान पर पहुँचे। वहाँ उन्होने भगवान् और माना त्रिगला को वदन किया। फिर त्रिशला माता की स्तुति करके उन्हे अपना परिचय देते हुए कहा- 'मैं भगवान् का जन्म-कल्याण मनाने आया हूँ, अत आप भयभीत न हो ।' यह कह कर उन्होने परिवार सहित त्रिशलाजी को 'अवस्थापिनी' नामक गाढ निद्रा दे दी। पश्चात् भगवान् का प्रतिविम्ब बनाया। उसे माता के पास रवखा और भगवान् को अपने हाथो मे उठाकर जय जयकार के मध्य मेरु पर्वत पर लाये। वहाँ जीताचार (अनादि रीति) के अनुसार सबने मिलकर भगवान् का जन्म-कल्याण मनाया। मेरु कंपन उस समय भगवान् को सैकडो घडो से स्नान कराने के पहले भगवान् का छोटा-सा शरीर देख शकेन्द्र के मन मे शका हुई कि 'भगवान् इतनी अधिक जलवार को कैसे सहन कर सकेगे ? भगवान् ने अवधि-ज्ञान से शक्रेन्द्र की इस शका को जानकर उस शका को दूर करने के लिए बायें पैर के अँगूठे से ही मेरु पर्वत को कँपा दिया। यह देखकर शक्र के मन की शका दूर हो गई। ऐसा था भगवान् का बाल्यकाल का शारीरिक बल । भगवान का जन्म-कल्याण महोत्सव हो जाने पर शक्रन्द्र ने उसी रात मे भगवान् को माता के पास ले जा कर
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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