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________________ १०० १३२ १४७ १४६ १५० १५३ १९२ २०४ २१६ २२६ २४१ तत्त्व-विभाग १ पञ्चीस बोल के स्तोक (थोकडे) के कुछ बोल सार्थ ... २. सम्यक्त्व (समकित) के ६७ बोल, सार्थ ३. श्रावकजी के २१ गुरण ४ श्रावकजी के चार विश्राम ५. चार गति के कारण कथा-विभाग १. भगवान् महावीर २ गणधर श्री इन्द्रभूतिजी (श्री गौतमस्वामीजी) ३. महासती श्री चन्दनबालाजी ४. श्री मेघ कुमार (मुनि) '५ श्री अर्जुनमाली (अनगार) J६. श्री कामदेव श्रावक ७. श्री सुलसा श्राविका 5. श्री सुबाहु कुमार (मुनि) १६. छोटी बहू रोहिणी काव्य-विभाग १. श्री पंचपरमेष्ठि-स्तवन २ श्री चौवीसी-स्तवन ३ तीर्थकर स्तव ४ अर्हन स्तव '५ महावीर नमन ६ गुरु वन्दनादि ७. वीर व उनके शिष्यो की स्मृति ८. जैनधर्म के १४ गुण ६. पालो हद प्राचार १०. स्थानकजी मे जाएं ११. सामायिक कीजिये २५० २६० २६६ २७३ २७४ २७५ २७५ २७६ २७७ २७८ २७६ २८० २८१ २८२
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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