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________________ सत्त्व विभाग-चौदहा वोल : 'सम्यक्त्व के पांच भेद' । १४५ ८. क्रिया रुचि : किसी को साधू-श्रावक की क्रिया (करणी) करते रहने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।। ६. संक्षेप रुचि : किसो को 'जो जिनेश्वरो ने कहा है, वही सत्य है और शका रहित है'-सक्षेप मे इतनी श्रद्धा करने से भी सम्यक्त्व उत्पन्न होती है। १० धर्म रुचि • किसो को 'जिनेश्वरो द्वारा बताया हुआ जैन धर्म (अस्तिकाय धर्म, श्रुत धर्म, चारित्र धर्म) ही सच्चा है'--ऐसी श्रद्धा रखने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है। -उत्तराध्ययन, अध्ययन २८ से। चौदहवाँ बोल : 'सम्यक्त्व के पाँच भेद' १. उपशम सम्यक्त्व : जो दर्शन मोहनीय की तीन तथा अनन्तानुबंधी कषाय की चौकडी-ये सात प्रकृतियाँ उपगम करने पर उत्पन्न हो। २ क्षायिक सम्यक्त्व : जो इन्ही सात प्रकृतियों को क्षय करने पर उत्पन्न हो। ३. क्षयोपशम सम्यक्त्व : जो इन्हीं सात प्रकृतियो का कुछ क्षय तथा कुछ उपशम करने पर उत्पन्न हो । ४ सास्वादन सम्यक्त्व : जो मिथ्यात्व को ओर जाते हुए सम्यक्त्व का कुछ स्वाद रह जाने से उत्पन्न हो। ५. वेदक सम्यक्त्व : जो क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करने से पहले एक समय सम्यक्त्व मोहनीय का वेदन करने से उत्पन्न हो। -अनुयोग द्वार प्रादि अनेक सूत्र तथा प्रवचन सारोद्धार से।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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