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________________ दानवीर द्रव्य-सहायक बन्धुओं का संक्षिप्त परिचयः श्रीमान् सेठ साहब श्री धूलचन्दजी, हीराचन्दजी, दलीचन्दजी मूथा मारवाड निवासी श्री लच्छीरामजी के पुत्ररत्न है। आपकी जन्मभूमि राणावास ग्राम है । आपने अपने बचपन मे उस समय की रीति-रिवाज के अनुसार सामान्य शिक्षा प्राप्त की। बचपन मे घर की आर्थिक स्थिति सामान्य थी, इसलिये आप दूसरे प्रान्तो मे व्यापार करने के लिये गये। 'व्यापारे वसति लक्ष्मी-व्यापार मे लक्ष्मी का वास है'-इस सिद्धान्त के अनुसार आपका काम-काज पनपने लगा। भाग्य ने अपका साथ दिया और धीरे-धीरे व्यापार चमकने लगा और आप भी श्रीमन्त लोगो मे गिने जाने लगे । नीतिशास्त्र मे लिखा है कि 'योग्य व्यक्ति को धन प्राप्त होता है। धन से धर्म-कार्य करता है, तब उसे सुख की प्राप्ति होती है। आपके हाथ मे लक्ष्मो आई और आपने समय-समय पर चचल लक्ष्मी का सदुपयोग शुरू किया। "धन का सबसे अच्छा उपयोग है सत् पात्र मे दान देना ।" आपने राणावास मे दवाखाने के सामने ही एक धर्मशाला अपने नाम से बनवाने का कार्य चालू कर रखा है तथा गांव मे एक कुआ बनवाने हेतु आपने १०,०००) दस हजार रुपये दिये। श्री वर्द्धमान स्था० जैन शिक्षण सघ मे भी आपकी आर्थिक सेवा तथा शुभ सम्पत्ति प्राप्त होती रही है।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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