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________________ [ १११ 1 २ अकाय: प् (पानी) ही जिनका शरीर हो । जैसे बरसात का पानी, गड्ढे का पानी ओस का पानी, धंवर का पानी, कुएँ का पानी, बावडी का पानी, तालाब का पानी, समुद्र का पानी इत्यादि । तत्त्व विभाग - तीसरा बोल : 'छह कार्य ' w ३. तेजस्काय : तेजस् (अग्नि) हीं जिनका शरीर हो । जैसे काष्ठ की ग्रग्नि, कोयले की अग्नि, बिजली की अग्नि, ज्वाला, अग्निकरण आदि । ४. वायुकाय : वायु (हवा) ही जिनका शरीर हो । जैसे सामान्य वायु, तिरछी तेज बहने वाली आँधी, ऊपर गोल बहने वाली वायु, गुजारव करती बहने वाली वायु श्रादि । ५. वनस्पतिकाय: वनस्पति ही जिनका शरीर हो । वनस्पति दो प्रकार की होती है - १ प्रत्येक और २ साधारण ( निगोद ) । जिस शरीर मे वह स्वयं अकेला ही मुख्य रूप से रहे - ऐसा शरीर जिसे मिला हो, उसे प्रत्येक वनस्पति कहते है । जैसे वृक्ष, पौधे, झाडियाँ, लताएँ, बेले, घास, शाक, धान्य श्रादि । जिस शरीर मे वह और दूसरे भी अनत जीव साधारण रूप से रहे - ऐसा शरीर जिसे मिला हो, उसे साधारण वनस्पति कहते है जैसे कादा, लशुन, गाजर, मूला, आलू, रतालू, नये निकले हुए त्ते, अकुर वाला धान्य आदि । । 1 [ ये ऊपर वाले पाँचो काय एकेन्द्रिय हैं तथा स्थावर काय कहलाते है । जिनका शरीर ऐसा हो कि वे सर्दी-गर्मी से बचने के लिए धूप-छाँव आदि मे आ-जा न सके, उन्हे स्थावरकाय कहते है । ६. सकाय : जिनका शरीर ऐसा हो कि वे सर्दी-गर्मी से बचने के लिए धूप-छाँव आदि मे आ-जा सकें । द्वीन्द्रिय से पञ्चेन्द्रिय तक ये चार सकाय है । ..
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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