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________________ प्रकाशकीय सम्वत् २ २० के ग्रीष्मावकाश के समय राणावास मे स्थानकवासी जैन धार्मिक शिक्षण शिविर का आयोजन हुना। शिविर-काल मे तपस्वी मुनि १००८ श्री लालचन्द्रजी म० सा०, तरुण तपस्वी श्री मांनमुनिजी म० सा०, प्रसिद्ध व्याख्याता श्री कानमुनिजी म. सा० तथा प० २० श्री पारसमुनिजी म० सा० भी वहीं विराजे। शिविर में विभिन्न क्षेत्रो से ५१ विद्यार्थी सम्मिलित हुए। श्री कानमुनिजी म० सा० वे श्री पारसमुनिजी म. सा० ने अल्प समय मे विद्यार्थियों को बहुत ही सुन्दर ढंग से हृदयस्पर्शी धार्मिक अध्ययन कराया। शिक्षण शिविर समाप्ति-समारोह के अवसर पर प्रागन्तुक सजनों ने शिविर की सफलता को देखकर इस योजना को दृढ और स्थायी बनाने के लिये शिक्षण शिविर समिति का गठन किया। इस शिक्षण समिति ने प० पारसमुनिजी म. सा० से शिक्षण-शिविर पाठ्य-क्रम को इस रूप में तैयार करने का नम्र प्राग्रह किया कि वह शिविरोपयोगी होने के साथ-साथ शिक्षण संस्थामो मे शिक्षण के लिये भी उपयोगी हो सके। __शिविरोपरान्त पं. पारसमुनिजी म. सा० ने हमारे निवेदन को क्रियात्मक रूप देने की कृपा की। अापके अथक परिश्रम, निरन्तर अध्यवसाय व हादिक लगन के फलस्वरूप देवगढ़ (राजस्थान) चतुर्मास मे दो पाठमालामो का निर्माण कार्य सम्पन्न हो सका। तदनन्तर प्रवास काल मे भी प्रापको साहित्य साधना चलती रही और तृतीय पाठमाला जोधपुर प्रावास-काल में लगभग सम्पूर्ण की जा सकी।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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