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________________ पाठ २५ - 'सामायिक' प्रश्नोत्तरी ७ श्रालस्य ८ मोटन मल १० विमासन, ११ निद्रा १२ वैयावृत्य, ये बारह कार्य दोष ॥३॥ १. कुप्रासन = अविनय - अभिमानयुक्त श्रासन से बैठे। जैसे— पैर पसारे, पाँव पर पाँव चढ़ाकर बैठे । २. चलासन = बिना कारण अग का आसन, वस्त्र का ग्रामन या भूमि का आसन बदले । ३. चलदृष्टि = दृष्टि स्थिर न रखखे, बिना कारण इधरउधरदे खता रहे। ४. सावद्यक्रिया = पाप - क्रिया करे, सासारिक क्रिया करे, आभूषण, घर, व्यापारादि की रखवालो करे या संकेत श्रादि करे । ५. श्रालंबन = रोगादि कारण बिना भीत, खभे आदि का टेकाले । ६ श्राकुंचन प्रसारण = कारण हाथ-पैर सिकौड़े-पसारे । ७ आलस्य = आलस्य से अग मोडे । ८. मोटन - हाथ-पेर की अगुलियाँ मोडे चटकावे । शरीर का मल उतारे । ५०. विमासन = शोकासन से बैठे, बिना पूँजे खाज खुजाले, रात्रि मे बिना पूँजे मर्यादा या श्रावश्यकता से अधिक चले । ११. वयावृत्य = बिना कारण दूसरो से सेवा करावे (या कंपन) स्वाध्यायादि करते डोलता रहे । ६. मल = [ ६५ पाठ २५ पच्चीसवाँ 'सामायिक' प्रश्नोत्तरी По सामायिक कहाँ करनी चाहिए ? उ० . सामायिक निरवद्यं स्थान मे करे । जहाँ तक हीं,
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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