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________________ '८८] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ सीहारणं-सिंह' के समान - (पराक्रमी) । वर-श्रेष्ठ। पंडरीयारणं-पुण्डरीक कमल के (श्रेष्ठ जाति के कमल के) समान (मनोहर)। वर=श्रेष्ठ। गंधहत्थीगंगंध हस्तो के (जिसके मद की गंध से दूसरे हाथी भाग जाते है, उसके) समान (परवादियो को भगाने वाले)। अरिहंत भगवान विश्व के लिए कैसे है ? लोगुत्तमारणं लोक मे उत्तम । लोग-लोक के। नाहारणं % नाथ (अनिष्ट का नाश करने वाले)। हियारणे हितकारी (इष्ट की प्राप्ति कराने वाले)। पइवारणं-दीपक (लोक को प्रकाश देने वाले) तथा। पज्जोयगरा-प्रद्योत करने वाले (लोक को प्रकाशित करने वाले)। अरिहत भगवान् हमे क्या देने वाले है ? अभय-अभय के। दयारणं देने वाले। चक्खु- (ज्ञान की) आँखे। मग% (मोक्ष का) मार्ग । सरण-(मोक्ष की) शरण। जीव- (सयम रूप) जीवन तथा। वोहि-बोधि (सम्यवत्व)। दयारण = देने वाले । . . - अरिहत भगवान् हमारे लिए क्या करते हैं ? धम्म वर्म के। दयारणं देने वाले। धम्म-धर्म के। देसयारणं = (उप) देशक । धम्म धर्म के । सारहीएंसारथी'। धम्म - धर्म के। वर: श्रेष्ठ। चाउरंत - चार (गति) का अन्त करने वाले । चक्कवट्टीरणं - चक्रवर्ती। दीवो: (ससार-समुद्र मे डूबते हुयो को) द्वीप के समान। तारणं 3 'प्राणभूत (रक्षक) 1 सिरणं - शरणभूत । गइ - गतिभूत । पइट्ठा-प्रतिष्ठा (आधार) भूत। के समान। सर पट्ठा
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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