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________________ ६२ ] जैन सुनाव पाठमाला-भाग १ उ० : चतुर्विशतिस्तव का पाठ। प्र० : इसे चतुविशतिस्तव का पाठ क्यों कहते हैं ? उ० : इससे चौवीस तीर्थकरों की स्तुति की जाती है, इसलिए। प्र० • 'लोक का उद्योत करने वाले का भाव क्या है ? उ० : विश्व का ज्ञान कराने वाले । प्र० : यहाँ कीर्तन किसे कहा है ? उ० . मन से १. नाम स्मरण करने को और २. गुरण-स्मरण करने को। प्र० · यहाँ वन्दन किसे कहा है ? उ० : मुख से १. नाम-स्तुति करने को और २. गुण-स्तुति करने को। ६० : यहाँ पूजन किसे कहा है ? उ, · पूज्य मानकर (स्मरणीय और स्तवनीय मानकर) काया (पचाग नमाकर) से नमस्कार करना। प्र० : क्या तीर्थंकरो की फूलो से पूजा करना 'पूजन' नहीं कहलाता? . उ० : नहीं। तीर्थकरादि के सामने जाते हए पहला अभिगमन है -सचित्त का त्याग। जव सचित्त को लेकर तीर्थकरादि के सामने जाने का भी निषेव हैं, तव सचित्त फूलो से उनकी पूजा करना 'पूजन' कैसे कहला सकता है ! प्र० : कीर्तन तथा वन्दन से क्या लाभ होता है ? उ० : १. ज्ञान वढता है। जसे, गरगो के स्मरण तथा स्तुति से यह ज्ञान होता है कि कौनसे गुणों वाला देव सच्चा देव हो सकता है ? तथा नामों के स्मरण तथा स्तुति स । यह ज्ञान होता है कि ऐसे गणों वाले सच्चे देव कान
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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