SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४५) सम्यग्दर्शन के साथ जीव किस प्रकार उत्पन्न होता है ? इस बात का इतना लम्बा विचार और हेतुवाद केवल नियेच के द्रव्यशरीर की पात्रता पर ही किया गया है। यहां पर चौथे गुणस्थान के सम्भावित शरीर के कथन की मुख्यता बताई गई है, इस बात श्री सिद्धि सूत्र में पड़े हुये अपर्याप्त पद से की गई है। अतः इस समस्त प्रकरण में पर्याप्त अपर्याप्त पद भाववेद का विधान नहीं बरते हैं किन्तु द्रव्य शरीर का ही करते हैं यह निर्विवाद निर्णय सूत्रकार का है। भाव – पक्षियों को निष्पक्षदृष्टि से सूत्राशय को व्याख्या के आधार पर समझ लेना चाहिये । और भी खुलासा देखिये - सम्मामिच्छाइट्ठि संजदासंजन्द्र ऐ णियमा पज्जत्ता । (सूत्र ८५ पृष्ठ १६३ धवल सिद्धांत) अर्थ सुगम है। इस सूत्र की व्याख्या करते हुये धवलाकार ने यह बात सप्रमाण स्पष्ट कर दी है कि सूत्र में जो तियेचों के पांचवां गुणस्थान बताया गया है वह पर्याप्त अवस्था में ही क्यों बताया गया है, पर्याप्त अवस्था में क्यों नही बताया गया ? व्याख्या इस प्रकार है मनुष्याः मिध्यादृष्टवस्थायां बद्धतिर्यगाथुषः पश्चात् सम्यग्दशैनेन सहाचा प्रत्याख्यानाः क्षपितसप्तप्रकृतयस्तियुक्षु किन्नोत्पते? इति चेत् किचातोऽप्रत्याख्यानगुणस्य तिर्यगपर्याप्तष सत्या
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy