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________________ (11) कि यह वर्णन द्रव्य शरीर का ही है। भागे इन्हीं मागंणामों में गुणस्थान पटित किये गयेहैं। यहां विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसी काययोगके निरूपण में प्राचार्य भूतबली पुष्पदन्त ने पर्याप्तियों का सम्बन्ध बताया है जैसा कि सूत्र हैकायजोगो पजत्तण वि अस्थि, अपनत्ताण विपत्थि। (सत्र ६६ पष्ठ १५५ धवन) अर्थ सुगम है इती सूत्र को धवज्ञा टीका में प्राचार्य वीरसेन स्वामी जिखते हैं कि पर्याहस्यैव पते योगाः भवन्ति, एते चोभयोरिति वचनमारण्य पर्याप्ति-विषयजात-संशयस्य शिष्यस्य सन्देदापोहनाथ. मुत्तरसूत्राएयभाणात 'छ पजत्तीमा छ भपजत्तोत्रो।' (मत्र ७० पष्ठ १५६ धवल सिद्धांत) यहां पर प्राचार्य वीरसन ने पर्याप्तियों का विधायक सत्र देखकर यह भूमिका प्रगट की है कि ये योग पर्याप्त जीव के ही होते हैं और ये योग पर्याप्त अपर्याप्त जीवों के होते हैं। इस सूत्र निर्दिष्ट वचन को सुनकर शिष्य को पर्याप्तियों के विषय में संशय खड़ा हो गया, उसी संशय के दूर करने के लिये प्राचार्य भूतबनि पुष्पदन्त ने पर्याप्तियों के विधायक सूत्र कहे है- सूत्र में बह पर्याप्तियां भोर बहभपर्याप्तियां बनाई गई है। पर्याप्ति के
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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