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________________ (२२) घटित किया है जैसा कि-संत परूण दारा दुवितो णिदेसो मोघेण प्रादेसेण च। (सत्र ८ पृष्ठ ८० धवना) इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि सपहरणा अनुयोग द्वार द्रव्य शरोर निरूपण करना। क्योंकि भात्रवेद द्रव्यापित है। द्रव्य शरीर को छोड़कर भाववेद का निरूपण अशक्य है। इन्ही सब बातों का खुलासा हम षट खण्डागम धवल सिद्धांत के भनेक सत्रों का प्रमाण देकर यहां करते हैं भादेसेण दियाणुवादेण भत्यि णिरयगदी निरिक्वादो मणुरक्षगदी देवगदी सिद्धगदी चेदि । (सूत्र २४ पृष्ठ १०१ धवला) अर्थात मार्गणामों के कथन को विवा से पहिले गति मागंणा में चारों गतियों का सामान्य कथन है नरक गति तिर्यचगति मनुष्यगति देवगति और सिद्धांत ये पांच गतियां सुत्रकार बताते हैं। इन में मन्तिम सिद्धगति को छोड़कर बाको चारों ही गतियों का निरूपण शरीर सम्बन्ध से है । इसके आगे के २५वें सूत्र से लेकर २ सूत्र तक चारों गतियों में सामान्य रूप से गुणस्थान पटित किये गये हैं तथा सूत्र २६ से लेकर सूत्र ३९ तक पारों गतियों के गुणस्थानों का कुछ विशेष सम विषम वर्णन है गतिमार्गणा में तिर्यवर्गात में पांच गुणस्थान कहे हैं सूत्र यह है तिरिक्सा पंचसु ठाणेसु पत्थि मिच्छाही, सासण
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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