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________________ उच्चारणसूत्र मादि सैद्धान्तिक पदों का नामोल्लेख के प्रदर्शन करने मात्र से यों ही विवाद में बनी रहे। विचारकोटि में भाने पर सबों को समझ में ण जायगी । और उस तस्व के अनेक विशेषज्ञ जो हिंदी भाषा द्वारा गोमट्टसार का मर्म समझते हैं वे भी सब अच्छी तरह समझ लेंगे जो निर्णी. बात है वह भन्य. था कभी नही हो सकती । श्रीपं० पन्नालाल जी सोनी, श्री० ० फूल चन्द जी शास्त्री प्रति विद्वान इन गोमट्टसारादि शाखों के जाता है, फिर भी उनके, प्रन्याशय के विरुद्ध लेख देखकर हमें कहना पड़ता कि या तो वे पत्र पक्ष-माह में पड़ कर निष्पक्षता और पागम की भी परवा नहीं कर रहे हैं, और समझते हुए भी अन्यथा प्रतिपादन कर रहे हैं, अथवा यदि एनों ने गोमट्टसार और सिद्धान्त शास्त्रों को केवल भाव भदानरूपक ही सममा तो उन्हें पुनः उन ग्रन्थों के पन्नम्तत्व को गवेषणात्मक बुक से अपने दृष्टिकोण को बदल कर मनन करना चाहिये । हम ऐसा लिख कर उन पर कोई भाक्षेप करना नहीं चाहते हैं. परन्तु प्रन्थों की स्पा कथनी को देखते हुए और उसके विरुद्ध सक विद्वानों का कथन देखते हुए उपयुकदो हो विकल्प हो सकते हैं मतः पाप का सर्वथा अभिवाय नहीं होने पर भी हमें बस्तु स्थिति वश इसना विलना भनिच्छा होते हुए भी मावश्यक हो गया है। इसलिये वे हमें क्षमा करें।
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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