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________________ (७) सर्वत्र भेजा गया । उस समय हमारे पास समाज के ४-५ कक्षधारों के पत्र आये थे कि एक ट्रैक्ट को आप अपने नाम से नहीं निकालें अन्यथा राय बहादुर बाला हुलास राय जी जैसे तेरह कथ शुद्धाम्नाय वाले महानुभावों में जो विशेष प्रतिष्ठा आप की है वह नहीं रहेगी, उत्तर में हमने यही लिखा था कि हमारी प्रतिष्ठा हे चाहे नहीं रहे, किन्तु आगमकी पूर्ण प्रतिष्ठा अक्षुल्या रहनी चाहिये । हमारे नाम से निकलने में उस ट्रैक्ट का अधिक उपयोग हो सकेगा। जहां प्राचार्य वचनों को प्रमाण ठस कर उनकी प्रतिष्ठा मन की आ रही है वहां हमारी प्रतिष्ठा क्या रहती है और उसका क्या मुल्य है ? भी० राय बहादर लाला हुलास राय जी आदि सभी सज्जनों का वैसा हो धार्मिक वात्सल्य हमारे साथ बाज भी है जैसा कि उस ट्रैक्ट निकलने से पहले था । प्रत्युत चर्चा सागर के रहस्य और महत्व को समाज अब सम्झ चुका है। अस्तु आज भी उसी प्रकार का प्रसङ्ग मा गया है, सार पद का उस सिद्धान्त शास्त्र के मूल सूत्र में जुड जाना और उस का ताम्र पत्र जैसी चिरकाल तक स्थायी प्रति में खुद जाना भारी अनथ और चिन्ता की बात है। कारण; उस के द्वारा द्रव्य श्री को उसी पयोग से मोक्ष सिद्ध होती है यह तो स्पष्ट निश्चित है ही, साथ में सब मुक्ति, हीन सहमन मुक्ति, बाह्य अशुद्धि में भी मुक्ति शादि के भी निपट और मुक्ति प्राप्तिकी सम्भावना होना सहज होगी। एक अनर्थ दूसरे अनर्थ का साधन बन जाता है । वैसी 1
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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