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________________ ने इस संजद पद सम्बन्धी विवाद को दूर करने के लिये अपनी शक्ति लगाई है और पूर्ण चिना रखी है उपकी सफल समाप्ति श्रीमान विद्वदर पं० रामप्रसाद जी शास्त्री, पज्य श्री क्षुल्लक मृरिसि जी के सहेतुक लेखों म तथा इस "सिद्धांत सूत्र समन्वय" अन्य द्वारा अवश्य हो जायगी एसी श्राशा है। इस अपूर्व खोज के माथ लिम्वे गये गम्भीर प्रन्थ निमाण के लिये बम्बई पंचायत श्रीमान विद्यावारिध वादोभ केसगे न्यायालङ्कार पं० मम्वनलाल जी शास्त्री की अतीव कृतज्ञ रहेंगी। सुन्दरलाल जैन, अध्यक्ष दि० जैन पंचायत बम्बई । (प्रतिनिधि-रायबहादुर सेट जुहारुमल मूल चन्द जी) मुद्रक के दो वाक्य धवला के ६६वें सूत्रमें 'सनद' पद न होने के विषय में विद्वान लेखक महोदय ने जो इस पुस्तक द्वारा स्पष्टीकरण किया है हमारी उससे पूर्ण सहमति है। इस पुस्तक के छापने में संशोधन, छपाई तथा सफाई कह यथाशक्य सावधानी से ध्यान रखा गया है किन्तु टाइप पुराना अतएव घिसा हुआ होने के कारण अनेक स्थानों पर मात्रायें रेफ मादि स्पष्ट नहीं छप सके हैं। नये टाइप का यशसमय प्रन करन का भगीरथ प्रयत्न किया गया किन्तु सफलता न मिलसको । पुस्तक की आवश्यकता बहुत शीघ्र थी अतः उस पुराने वाहप स
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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