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________________ १० उठ कर इन दें कटों को लिखा है। इस प्रावश्यक कार्य मम्पादन के लिये हम पूज्य भाई माहब का प्रामार मानने को अपेक्षा का शुभाशीवाद चाहते हैं। इस ग्रन्यपर प्राचार्य महाराज तथा कमेटी का मन्तोष और प्रस्ताव सहायक महानुभाव सेठ बंशीलाल जो नादगांव तथा संठ गुलाबचन्द जी इस कार्तिक (श्री बीर निर्माण सम्पन २४७३) की अष्टाका में परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती श्री १०८ प्राचार्य शनिमाग। जी महाराज और मुनिराज ननिसागर जी तथा मुनिराज धर्मसागर जी महाराज के दर्शनार्थ हम कवलाना (नासिका गये थे, इसी समय वहां पर "श्री प्राचार्य शान्तिसागर जिनवाणी जाणी. द्वार कमेटी" का वार्षिक उत्सव भी हुमा था। परम पूज्य प्राचार्य महाराज, दोनों मुनिराज और उक्त कमेटी के समक्ष हमने अपनी यह सिद्धान-सूत्र-समन्वय" नामक प्रधरपना लिखित रूपमें वहीं पर पदी थी। विवाद कोटि में पाये हुये 'संजद' शन्न के विषय में परम पूज्य प्राचार्य महाराज और कमेटी को भी बहुत चिन्ता थी कमेटी इस सम्बन्ध में भरना उत्तरदायित्व भी समझती है। कारण कमेटी में सभी विचारशील धार्मिक महानुभाव है। हमारी इस रपना को बराबर तीन दिन तक बहुत ध्यान से सुन कर भाचार्य महाराज तथा सबों ने बहुत ह और सन्तोष प्रगट
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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