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________________ १५५ सोनी जी ने धवल सिद्धान्त के ६२ और ६३ में सूत्रों को लिखकर उनका अर्थ भी लिखा है, उस अर्थ के नीचे वे लिखते हैं fr "यत्र विचारणीय बात यहां पर यह है कि वे मनुषिणियां द्रव्यमनुविधियां है या भाव मनुषिणियां । भावमनुशियां तो हैं नहीं। क्योंकि भाव तो वेदों की अपेक्षा से है, उनका यहां पर्याप्तता अपर्याप्तता में कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि आ देश में पर्याप्तता भता ये दो भेद है नहीं। जिस तरह कि कोधादि कषायों में पर्याप्तता अपर्याप्तता ये दो भेद नहीं है। इस लिये स्पष्ट होता है कि ये द्रव्य मनुषिणियां हैं। आदि के द गुणस्थानों में पर्याप्त और पर्याप्त भाग तीन गुणस्थानों में पर्याप्त, इस तरह पांच गुणस्थान कहे गये हैं। इससे भी स्पष्ट होता है कि ये यमनुषिणियां हैं। भावमनुषिशियां होतीं तो उनके नौ या चौर गुणस्थान कहे जाते । किन्तु गुणास्थान पांच ही कहे गये हैं। (दि० जैन सिद्धान्त दर्पण द्वितीय भाग पृष्ठ १५० ) पाठकगण सोनीओ के ६२ और ६३ सूत्रों के अर्थ को ध्यान से पढ़ लेगें । उन्होंने सहेतुक इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि पटरागम के सूत्र ६२ और १३ में जो मानुषियां हैं वे द्रव्यसियां हो हैं और उनके पांच ही गुणस्थान होते हैं। भाज -वे बन्दी प्राणों से ६२-६३ सूत्रोंको भाववेद का विधायक बताते हुने छन सूत्रों में कही गई मानुषिणियों को भाव- मनुषि
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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