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________________ १३६ भावों का विवेचन उन्होंने गुणस्थानों द्वारा बताया है और जीव को शरीर मादि वाध प्रवस्था गति इंद्रिय, काययोग और तदन्तग्स पयाप्ति भादि इन मागणामों द्वारा बतायी। और इन्ही मागणा और गुणस्थानों का प्राधाराधेय सम्बन्ध से परस्पर समन्वय किया है। बस इसी क्रम से सामान्य विशेष रूप से सत्र विवेपन उन परम वीतरागी अंगदेश मानी महर्षियों ने किया। अब विधार यह कर लेना चाहिये कि चौदह मागंगा श्री में द्रव्यबंद कहां पर पाया है सो भावपकी विद्वान बतावे ? नामां. लख से व्यवंद का वर्णन चौदह मागणामों में कहीं भी नहीं पाया है। यदि यह कहा जाय कि बंद मागणाना पाई है उममें द्रव्यवंद का वर्णन क्यों नहीं किया गया? तो इसके उत्तर में यह समझ लेना चाहिये कि वेद मागेणा नापाय पुरद वंद नपुसकवेद मय से होती है जैसा कि सत्र वर्णन है। उसमें द्रव्यवेद को कोई विषक्षा हो नहीं है। मनः इन प्रन्यों में भावबंद की विवक्षा और उसका उल्लेख तो मिलता। द्रव्यवेद का उल्लेख चोर विवक्षा कहने का मार्गणामों में कोई विधान नहीं है। अतः कमक्क विरेचन से बाहर होने से सत्रों में उसका उल्लेख पाचायों ने गुणस्थानों में घटित नहीं किया है : किन्तु द्रव्य वेद से होने पासो ब्यवस्था और उस व्यवस्था से सम्पन्न रखने वाले गुणसानों ने भाषायों ने बोर दिया है सो पात भी नहीं है, द्रव्यदेव अस्वल्प गति में, इन्द्रियों में, काय में, बोग में और पर्वाति में
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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