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________________ ११५ गाथा २७ गो० म० इस गाथा का प्रमाण देकर मोनी जी ने बताया कि पसंयस सम्यग्दृष्टि की अपर्याप्त अवस्था में बीवेर काय नही। और पहले नरक को बोड़कर नसावेद का भी समय नही। . सोनी जी के इन प्रमाणों को देखकर में २० सामान जी दृनीकृत हिजन बोधक का स्मरण हो गया है, उसमें हमोंने जितने प्रमाण सचित्त पुष्प फल पूजन, सरपर्चन पाहिले निध में दिये हैं वे सब प्रमाण सवित्त पुष्प फल पूजन मादि के साधक है।हमें पारपर्य होता है कि होने व प्रमाण क्यों दिये। उन्होंने प्रमाण तो नन बम्तुषों के साधक दिये हैं, परन्तु अथै सन का उन्होंने उल्टा किया।जोकि सन प्रमाणों से सईया विपरीत पड़ता है। ऐसे ही प्रमाण भीमान पामान जी सोनी दे रहे हैं। वे भावीकी सिद्धि चाहते हैं, उनके दिये हुये प्रमाण द्रव्य. कीय विकारते हैं। लोगोम्सार की गाथा का अर्थ संकून टीका और परित प्रबर टोबरमा बी. हिन्दी अनुवादमें पाठक पद ले।हम उपयुक गाथा का खुलास मय रोका और ६० टोडरमन बी के हिन्दी अनुवाद सहित इस ट्रेक्ट में पाले बिख चुरे हैम: यहां अधिक ब नहीं भागे सोनीबीने गोम्मटसार जी के पासपाधिकार का प्रमाण देकर यह पाया 'मनुपिकी ये प्रस्थान में एक पर्याप्त मात्रापागवामी विकिर
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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